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झूठ तै मैं बोलूं कोन्या झूठ की म्हारै आण / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या झूठ की म्हारै आण
पानीपत के टेसण ऊपर मींडक बांटै बाण
एक अचंभा मन्नै सुण्या यो कुत्ता कपडणे धोवै
ओबरै में म्हैस जुगालै ऊंट पिलंग पै सोवै
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या...
कीड़ी मरी पहाड़ पै खींचण चले चमार
दो सै जोड़ी जूती बणगी सांटै कई हजार
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या...
कुतिआ चाली बिजार में गलै बांध के ईंट
बिजार के बणिए न्यूं उठ बोलैं ताई लता लेगी क छींट
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या...