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झूठ फैलाने का हैं हथियार अब / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'

झूठ फैलाने का है हथियार अब
ये हमारे दौर का अख़बार अब

वो डुबो देंगे हमें साहिल पे ही
जिनके हाथों सौंप दी पतवार अब

है नहीं शिद्दत<ref>दीवानगी</ref> कहीं अहसास में
इश्क़ बिकता है सरे-बाज़ार अब

देखिए सोए हैं चादर तानकर
साथ जनता के सभी फ़नकार<ref>कलाकार</ref>अब

गुल खिलाए आपका क्या बैडरुम
चाहती है जानना सरकार अब

इंक़लाब आएगा होगी इंतिहा<ref>अंत/पराकाष्ठा/हद</ref>
होगी सब के हाथ में तलवार अब

हम उजालों को उठा लाए ‘शलभ'
तीरगी<ref>अँधेरा</ref> भी हो गई लाचार अब