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झूठ से झूठ बचाने से भला क्या हासिल / सूरज राय 'सूरज'
Kavita Kosh से
झूठ से झूठ बचाने से भला क्या हासिल।
आईने घर के छुपाने से भला क्या हासिल॥
बात छोटी-सी है कि हाथ बढ़ा लें अपने
बेवजह बात बढ़ाने से भला क्या हासिल॥
दरमियाँ जोड़ने के जब ज़मीर घट जाये
फिर गुणा-भाग लगाने से भला क्या हासिल॥
गिर गए जब मेयार से ये तआल्लुक अपने
एक दीवार गिराने से भला क्या हासिल॥
फ़ोन बुक में तमाम शहृ है तेरी, लेकिन
ख़्वाब में पाये खज़ाने से भला क्या हासिल॥
चाह कर भी मेरी नज़र में उठ नहीं सकते
आप पर हाथ उठाने से भला क्या हासिल॥
भाग कर बच गया तो बाप मार देगा मुझे
जंग में पीठ दिखाने से भला क्या हासिल॥
आपका शौक चढ़ाना बलि चिराग़ों की
अर्ध्य "सूरज" को चढ़ाने से भला क्या हासिल॥