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झूठ / पवन करण
Kavita Kosh से
यदि यह झूठ है तो भी मेरी गति में
इसने अपनी जगह बना ली है
ऐसा झूठ जो दुनिया में जुबान से अधिक
लोगों की आँखों से बोला गया है
दुनिया सबकी हो सब इसे सबकी मानें
यह झूठ है तो मेरी तरह इसे
कौन नही बोलना चाहेगा
वह तो इसे बार-बार दोहराना चाहेंगे
जिन्हें यह लगता है यह दुनिया
उतनी उनकी नहीं
जितना इसे होना चाहिए उनका
झूठ ही तो था जो ढह गया है
जो ढह गया वह झूठ रहा होगा
मगर यह झूठ तो लगातार
अपने बोले जाने को अभिशप्त है