भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूमती बदली / रजनी मोरवाल
Kavita Kosh से
सावन की रिमझिम में झूमती उमंग
बदली भी झूम रही बूँदों के संग।
खिड़की पर झूल रही जूही की बेल
प्रियतम की आँखों में प्रीति रही खेल,
साजन का सजनी पर फैल गया रंग।
पुरवाई आँगन में झूम रही मस्त
आतंकी भँवरों से कलियाँ है त्रस्त,
लहरा के आँचल भी करता है तंग।
सागर की लहरों पर चढ़ आया ज्वार
रजनी भी लूट रही लहरों का प्यार,
शशि के सम्मोहन का ये कैसा ढंग।