भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूलण आली बोल बता के बोलण का टोटा / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
झूलण आली बोल बता के बोलण का टोटा
झूलण खातर घल्या करैं सैं पींघ सामण में
मीठी बोली तेरी सै जणो कोयल जामण में
तेरे दामण में लिसकार उठै चमक रिहा घोटा
झूलण आली बोल बता के बोलण का टोटा
लरज लरज कै जावै से योह् जामण की डाली
पड़ के नाड़ तुड़ा लै तैं रोवै तन्ने जामण आली
तेरे ढुंगे पै लटकै काला नाग सा मोटा
झूलण आली बोल बता के बोलण का टोटा
मोटी मोटी अंखियां के मांह डोरा स्याही का
के के गुण मैं कहूं तेरी इस नरम कलाई का
चंदरमा सा मुखड़ा तेरा जणों नूर का लोटा
झूलण आली बोल बता के बोलण का टोटा