भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झेंझी ब्रज का त्योहार / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
छोटी-सी एक लड़की घर पर
'झेंझी झेंझी' लेकर आई थी
उसमें जलता दीपक रख कर
अंचल से धक लाई थी
छेद बहुत थे उस हांडी में
झांक रहा था उजियाला
मेरे आँगन को किरणों से
जगमग करने आई थी
गीत सुनाये थे झेंझी के
सखिया संग में गाती थी
जल्दी जल्दी अस्फुट स्वर में
गुनगुन करती जाती थी
अल्हड्पन की मूरत थी वे
मस्त हवा-सी आई थी
छोटी छोटी बिटिया जैसी
झेंझी लेकर आई थी।