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झोपड़ी के वह लाल हैं / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
झोपड़ी के वह लाल हैं।
खूबसूरत कमाल हैं॥
बेवजह आप भी यहाँ
काटते क्यों वबाल हैं।
सोचते देश के लिए
लोग जो बेमिसाल हैं।
लाल, पीले जो चाहिए
माँगिए सब गुलाल हैं।
दीजिए तो जवाब भी
सामने जो सवाल हैं।