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झोलै मैं डिबिआ ले रह्या / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
झोलै मैं डिबिआ ले रह्या
हाथ्यां मैं ले रह्या रूमाल
पति हो तेरी कित की त्यारी सै
बहाण मेरी सुनपत ब्याही सै
हे री तीज्यां का बड़ा त्युहार
सिंधारा लै कै जाऊंगा
टेम गाड्डी का हो रह्या सै
हे री घंटी बाज रही खड खड
गाड्डी सिर पर आ रही सै
मिठाई सतपकवानी सै
हे री सासड़ तौली खाट बिछाए
बीर मेरा भाज्या आवै सै
बीरा मेरा सिर पुचकारै सै
मैं लेई गोड्यां के बीच बिठा
बीर नैणां में आसूँ ल्या रह्या सै
हे री मेरी सासड़ भरदी नां हां
बीर मेरा आंख्यां नै आ रह्या सै
जेठ मेरा सान्नी काटै सै
मेरा देवर काढै धार
पति मेरा पलटण में जा रह्या सै