तीन लोक का स्वामी जिनका कोई न जाने सार
कोटि कोटि देवों से पूजित, महिमा अपरम्पार
द्वार खड़ी तिहारे प्रभु हाथ जोड़ सरकार
टके भाव की शूद्र गवार हौं याचत नन्द कुमार
न पूजा न आरती वंदन, न जानूँ ठीक दुलार
भावों की हूँ काची जूठी हरि आई हूँ दरबार
पतित पातकी दूषित तबहि छाड़े पालनहार
टके भाव की शूद्र गवार...
जबसों दूर बसे पिया मेरा उजड़ गयो संसार
भटक भटक जग में दुखियारी, जीवन है निस्सार
कृपा करोगे क्या प्रियवर या दोगे फ़िर धिक्कार
टके भाव की शूद्र गवार...
दोष गिनो तो गिन नहीं पाओ, क्षमा परिधि पार
जाऊँ कहाँ मैं स्थान न कोई न दूजा दरबार
एक आस से जीवित हूँ, तुम आवो प्राणाधार
टके भाव की...
रो रो हाथ जोड़ कर मैंने माँगी कृपा अनेक
बीतत साल इहि हाल नहीं देखत प्रभु तो नेक
प्राण समर्पित करने को आतुर तेरी व्रज नार
टके भाव की शूद्र गवार हौं याचत नन्द कुमार