भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टमटम के टट्टू / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हड्डी पसली एक होल बनल बजर बट्टू ही
दिनरात काम करी टमटम के टट्टू ही
सुरुज उगल गाँव से दौड़ो ही स्टेशन
भूसा खिलावे हे खायले नै दे बेसन
लदल हे लदाल हे बोझ नेने भागो ही
देर रात काम करी तड़क हम जागो ही
भारी सबारी दस बारह गो बैठल हे
टमटम खींचे से देह हमर ऐंठल हे
राह हे खराब तनी रुकलापर मारे हे
अप्पन गोस्सा सब हमरा पर झारे हे
हट्ट-हट करे सब लोग के बुलावे हे
चारो खाना चित्त हमरा खूब ई झुलावे हे
कभी कहे बेटा कभी कहे चल यार हमर
चलते-चलते बीत जाहे यहैं हमर सगर उमर
वाह-वाह करे मगर हम करम घट्टू ही
दिनरात काम करी टमटम के टट्टू ही
आयमाय चढ़े तब खिस्सा गलबात करे
जब रंगदार चढ़े तब झात्-झात् करे
चढ़े कचहरिया तो टिकड़ंम भिड़ाबे हे
कनै से कनाय आर दुलहा भी आवे हे
मोटरी नेने गाँव के किसान भी गावे हे
सब हे ठीक ठाक हमरे ई सतावे हे
मँगही मंे बँूट से अब की नै भेंट हय
टन बोल जायके हमरा है अबकी भय
मालिक कमा हे हमर तैयो नय भरे पेट
मोटर टेकर चलते बढ़ल नै हमर रेट
चरचा चलावे कोय बैठ मारा मारी के
कोय कहे कैसे हम हड़पम ई पारी के
जात-पाँत के कोय गीत बड़ी गावे हे
आँख हे, झँपल मगर दूर तक जनावे हे
पैर में ठुकल हमर लोहा के नाल हे
टमटम में जुतल ही इहे हमर चाल हे
मुँह पर हमरा कटकटहा लगाम भी
पीठ पर कोड़ा पड़े जमल बड़ी घाम भी
कभी-कभी लोग सब लगावे बड़ी दाम भी
कभी कोय चढ़े बला कहे राम राम भी
चले में घिरनी हो कहे कोय लट्टू ही
दिन रात काम करी टमटम के टट्टू ही
बेटी कुमार ओकर बेटा बिमार हल
मालिक आ हम्मर ई जीवन में हार हल
चलते-चलते हम रस्ता में हाँफो ही
प्यास लगे हे मगर मन के भी चाँपो ही
चढ़े ज्यादे मोटर पर हम खड़ी सुक्खो ही
समय बेसमय सबके मान हम रक्खो ही
उच्चेश्रवा, चेतक, श्यामकर्ण के वंशज ही
हम हूँ, भगवान श्रीकृष्ण के अंशज ही
चललो हम तेज ही अर्जुन के रथ में
कभी ने रुको ही हम सुरुज के पथ में
पहँुचलों गौतम के तमसा के तीर तक
राम जब उतरला हल रोलों हल बक-बक
युद्ध महाभारत में हमर खूब मान हल
राजा महाराजा हें हमर बड़ी गान हल
अब तो ने खिलाय ने पिलाय बड़ी भार हे
हमरा पर सबारी के पड़ल बड़ी भार हे
चाल नय सिखलों कुछ बड़ी अछरकट्टू ही
दिनरात काम करी टमटम के टट्टू ही
बाढ़ ऐसन टीसन पर रोज हम जुटो ही
कभी उमानाथ या कचहरी में लुटो ही
कोय महादेव देखे गंगा-स्थान कैलक
मालिक ले हम खूब कमाबोही ऊ गैलक
हम चलल आबोही कोट आ कचहरी से
सकसोहरा, एकडंगा, लदमा आ शहरी से
ठाट-बाट हम्मर हे भागलपुर, पटना में
तारापुर चैन नै एको दुर्घटना में
दम हमर चूरल हे देह हमर थूरल हे
गर्दन के बाल भी कहिए से मूड़ल हे
मालिक के दुख के कहियो नै पार हे
कतनों कमैलक हें तैयो उधार हे
देखला हें तों कभी टमटम पड़ाव के
टमटम आ टट्टू पर पुलिस झड़ाव के
चढ़ल सब हमरा पर हम बरहबट्टू ही
दिनरात काम करी टमटम के टट्टू ही