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टमाटर के पौधे / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
छत पर रखे गमलों में
उग आए जाने कैसे
टमाटर के पौधे
शायद मिट्टी में रहा होगा
उनका बीज
जिसे लौटा रही थी वह
सूद समेत
देखते ही देखते पौधों की पतली नाजुक डालियाँ
फूलों फिर फलों से लद गयी इतनी
कि छूने लगीं छत की ज़मीन
मैंने छेड़ा-वो ठठरी बनती जा रही इण्डियन माँ
कुछ तो रखो परिवार-नियोजन का ध्यान
टहनियों ने मुझे गुस्से से देखा-नज़र न लगाओ
बच्चों को मेरे
कहकर पत्तों के आँचल से ढँकने लगी
फल बन रहे फूलों को
जाने क्यों याद आयी मुझे पड़ोस की वह गरीब माँ
जो जाड़ों की रातों में पुआल के बिस्तर पर
ठण्ड से सिकुड़ते बच्चों को
धीरे-धीरे खोलकर उढ़ाती जाती थी
पहनी हुई साड़ी।