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टाँग कर विराम / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
टहनी-टहनी महकी चोंच तोतई
पीड़ा दीवार हो गई
एक गन्ध ले-ले कर नाम
अनगूँजे गीत
खोजती रही
शाखों पर टाँग कर विराम
उतर गई धूप सोनई
पीड़ा दीवार हो गई ।