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टाइम पास / नेहा नरुका

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जब उन्हें बात करनी होती है
वे घण्टी घनघना देते हैं
तत्काल उनके कक्ष में उपस्थित होना होता है
वे किसी लेटर या फ़ाइल की तरफ़ अँगुली से इशारा करते हुए कहते हैं —
बहुत अर्जेन्ट हैं
शाम तक ख़त्म करो
नहीं तो, गिर सकती है बिजली ।

'इतनी जल्दी कैसे होगा, सर ?'

कैसे नहीं होगा, करो। हेल्प ले लो, बताओ किसकी चाहिए हेल्प ?

वे मुँह की तरफ़ देखकर मुस्कुराते हैं,
फिर हँसने लगते हैं ,
फिर कहते हैं — बैठो,
फिर गिनाने लगते हैं गुण
और गुणों के बीच में कमियों पर भी संक्षिप्त टिप्पणियाँ करते चलते हैं ।
औरत बैठकर ध्यान से सुनने लगती है अपनी कमियाँ,
बताने लगती है उनकी वज़हें, तमाम निजी समस्याएँ और उनके स्रोत ।

उनकी बातों से बात निकलती जाती है
उनके चेहरे का नूर बढ़ता जाता है
फिर वे नहीं कहते — अर्जेन्ट काम है करो फटाफट, नहीं तो, गिर जाएगी बिजली
वे ऐसे बात कर रहे होते हैं जैसे शाम को बारिश होने वाली हो
और पकौड़े तले जाने हों ।

टाइम निकलता जाता है ।

औरत बैठे से खड़ी हो जाती है

उनकी आँखें कहती हैं —
'अरे रुको न, कर लेने दो न थोड़ा और टाइम पास
वैसे भी क्या करोगी इस टाइम का ।'