टाट के टुकड़ों पे चिपके तितलियों के पर मिले / शैलेश ज़ैदी
टाट के टुकड़ों पे चिपके तितलियों के पर मिले।
मौत की तस्वीर में भी ज़िन्दगी के स्वर मिले ॥
खोजने बैठे थे नाहक़ अर्थ हम ईमान का।
शब्दकोशों में तो बस टूटे हुए अक्षर मिले॥
रात तक जो लोग शासन के नशे में चूर थे।
धूल में लिपटे सुबह होने पर उनके सर मिले॥
बाँसुरी है कंस के हाथों में सिर पर है मुकुट।
गोपियाँ खुश हैं उन्हें सौभाग्य से गिरधर मिले॥
सोचकर होगा अमन गुज़रा मैं जब उस गाँव से।
आग के शोले उगलते फूस के छप्पर मिले॥
घुप अँधेरों की नुकीली विष भरी दुर्गन्ध में।
साँस लेते, छटपटाते-चीख़ते कुछ घर मिले॥
कह दो सत्ता से कि अब मज़दूर बिक सकते नहीं। बात करनी हो जिसे, उनसे ज़रा झुककर मिले॥
हार के अहसास से गुज़रे किसी लमहा न हम। दुःख मिले, पीड़ा मिली, आँसू मिले, नश्तर मिले॥
सबके सब बहरूपिये हैं इनसे रहना होशियार। वेश में नेता के हमको हर जगह विषधर मिले।