भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टाबर - 9 / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थानै
बैम है
कै थे टाबरां नै
सुधारौ
अर बानै
संस्कारित करौ

खुद नै देखौ
खुद रै भीतर

टाबर
सुधर ज्यासी
आपीआप।