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टालीनाला / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर
Kavita Kosh से
टालीनाला से हम आए हैं खिसक
राजनीति और पुलिस का हाथ पकड़
इसी नाले को ही बना डाला था घर
हफ्ता देते आए हैं, दिया है पुलिस कर
उधर गड़िया तक, छूटेगी मेट्रो रेल
मिल एकाकार हुई विद्याधरी में तेल
लड़का मेरा कुन्दघाट में बीड़ी बाँधता है
साँवली लड़की तीन घर सालन पकाती है
लेकिन अब मेरा ही चूल्हा टूटा है
अब क्या कभी भी जुटेगा थोड़ा भी खाना ?
रास्ते-रास्ते पर आज सबकी रसोई है
वह भी तोड़ दी पाड़ा के गुप्तचरों ने
जानता नहीं इस बार पूजा में कहाँ जाऊँगा
भोजन न पकने पर नहीं जानता कैसे खाऊँगा ?
मूल बाँग्ला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता और अनिल पुष्कर