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टिकवा देख मत भुलिहऽ हो दादा / मगही

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

टिकवा<ref>मँगटीका नामक आभूषण</ref> देख मत भुलिहऽ<ref>भूलना, भ्रम में पड़ जाना</ref> हो दादा, टिकवा हइ मँगन<ref>उधार माँगकर लाया हुआ</ref> के।
दुलहा हइ सतपँचुआ<ref>सात-पाँच व्यक्तियों का</ref> के जनमल<ref>जन्मा, अर्थात् छिनाल का जन्मा हुआ, वर्णसंकर</ref> दुलहिन हइ जिमदार<ref>जमीन्दार, रईस</ref> के॥1॥
नथिया देख मत भुलिहऽ हो बाबा, नथिया हइ मँगन के।
दुलहा हइ सतपँचुआ के जनमल, दुलहिन हइ जिमदार के॥2॥
झुमका देख मत भुलिहऽ हो चच्चा, झुमका हइ मँगन के।
दुलहा हइ सतपँचुआ के जनमल, दुलहिन हइ जिमदार के॥3॥
हँसुली देख मत भुलिहऽ हो मामा, हँसुली हइ मँगन के।
दुलहा हइ सतपँचुआ के जनमल, दुलहिन हइ जिमदार के॥4॥

शब्दार्थ
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