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टिग्गुल / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
फटी पतंगों के
रंगबिरंगी कग्गज को
फाड-फूड कर बनाए गए
गोल-गोल, छोटे-छोटे
टिग्गुल।
ईंधन की तरह
उनमें भरे गए पत्थर
और फेंके गए ऊँचे
आसमान में।
पत्थर तो गिर पड़े जल्द ही
किसी कक्षा में
स्थापित होने के पहले
रॉकेट के जले हुए
अवशिष्ट भाग जैसे...
...और अब
टिग्गुल आ रहा है
धीरे, धीरे, धीरे
धीरे, धीरे, धीरे
जैसे किसी दुर्गम ग्रह से
लौट रहा हो विजयी होकर
अंतरिक्ष यान-सा।
गर्मजोशी से अगवानी करने
जुटी भीड़
हो-हो रे! होय-होय!
हो-हो रे!! होय-होय!!
-लूट