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टिम्पुकली तू बड़ी होकर क्या बनेगी / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
मैं
बनना चाहती हूँ
ऐसा पेड़
जिसमें
कभी कोई पतंग न फंँसे।
बनना चाहती हूँ
मैं
ऐसी कलम
जो
कभी कोई गलत उत्तर न लिखे
मैं चाहती हूँ बनना
ऐसा मेला
जिसमें
कभी कोई बच्चा न बिछुड़े
मैं
बनना चाहती हूँ
ऐसी नदी
जिसमें
कभी कोई नाव न डूबे
बनना चाहती हूँ
मैं
ऐसी दुकान
जो
कभी खिलौनों के दाम न मांगे
मैं
चाहती हूँ बनना
छुट्टी की घंटी
जो मैदानों को सूना न रखे।