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टिली-लिली / प्रभाष मिश्र 'प्रियभाष'
Kavita Kosh से
चूहेराम उड़ाते खिल्ली,
टिली, लि-ली,
पकड़ न पाई मोटी बिल्ली
टिली, लि-ली।
नाली में मुँह धो आओगी,
फिर भी मुझे न छू पाओगी,
मौसी बहुत दूर है दिल्ली
टिली, लि-ली।
मुझसे रहती हो खिसयानी,
लेकिन क्यों मर जाती नानी,
अगर भौंक दे पिल्ला-पिल्ली
टिली, लि-ली।
झबरू जी ने रस घोला था,
मुझको पहलवान बोला था,
तुमको बता गए मरगिल्ली
टिली, लि-ली।
कमजोरों को जो न सताते,
वही बहादुर हैं कहलाते,
क्या समझीं मैडम सिलबिल्ली
टिली, लि-ली।
-साभार: नंदन, मार्च, 2007, 18