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टीन की छत / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
सुबह निश्छल बच्ची की तरह
हल्के से छूती है
जगाती है
पंछियों का पदचाप
टीन की छत से छनकर
कानों तक पहुँचता है
खिड़की से झाँकता है
जाना-पहचाना आग का गोला
टीन की छत के नीचे ही
नवरस की अनुभूति करता हूँ
कभी वेदना से हाहाकार कर उठता है
हृदय
कभी आनंद से उछलने लगता है
हृदय
टीन की छत पर बारिश का संगीत
सुनते हुए
विषादग्रस्त रातों में भी
रोमानी अनुभूतियों से सराबोर
हो जाता हूँ
कि इस बुरे वक़्त में भी
आसमान और धरती के बीच
एक स्नेहमय आँचल
सिर पर है