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टीपे-ग़म का सोज़े-जिगर का अज़ाब / मेला राम 'वफ़ा'
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टीपे-ग़म का सोज़े-जिगर का अज़ाब
क़यामत है आठों पहर का अज़ाब
दिया भी तो दिल किस दिल-आज़ार को
लिया भी तो क्या उम्र भर का अज़ाब
कहां पाने देता है जीने का लुत्फ़
ये हर दम का, मरने के डर का अज़ाब
निशाते-शबो-रोज़ तुझ को नसीब
मिरा हिस्सा, शामो-सहर का अज़ाब
मुक़द्दर हुआ बे-ज़रों को 'वफ़ा'
हवा-खाहिए-अहले-ज़र का अज़ाब।