भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टीपे-ग़म का सोज़े-जिगर का अज़ाब / मेला राम 'वफ़ा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टीपे-ग़म का सोज़े-जिगर का अज़ाब
क़यामत है आठों पहर का अज़ाब

दिया भी तो दिल किस दिल-आज़ार को
लिया भी तो क्या उम्र भर का अज़ाब

कहां पाने देता है जीने का लुत्फ़
ये हर दम का, मरने के डर का अज़ाब

निशाते-शबो-रोज़ तुझ को नसीब
मिरा हिस्सा, शामो-सहर का अज़ाब

मुक़द्दर हुआ बे-ज़रों को 'वफ़ा'
हवा-खाहिए-अहले-ज़र का अज़ाब।