भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टीस /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
प्रसव की पीड़ा
दिशा में
हहराता-सा तन,
वेदना झकझ्होरती
ज्यों गरजता है घन !
टीस
नभ को चीर
कसकी
लपट-सी उजली जली,
फिर बुझ गई
बिजली कहीं चमकी !