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टी-शर्ट : वारेन बफ़ेट और गीत चतुर्वेदी के लिए / विनोद विट्ठल

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चान्द की तरह होता है टी-शर्ट, सबका
बिना चेन-बटन की होती है बसन्त की हंसी भी

बसन्त हमेशा टी-शर्ट पहन कर आता है
देख लो तुम्हारी पुरानी तस्वीरें

माँ की दाल और दीदी की चाय की तरह
ये कभी कम नहीं पड़ती
बढ़ जाती है ज़रूरत के मुताबिक़
काश ! बैंक बैलेंस ने इससे सीखा होता
ज़रूरत मुताबिक़ बढ़ जाने का हुनर

सी०पी० और सरोजनी के यू०एस० पोलो में
कौन असली है कोई नहीं जानता,
एक से दिखते हैं अन्ना और उनके साथ तस्वीर खिंचवाने वाले लोग

फूड हिस्टॉरीयन की तरह गार्मेण्ट के हिस्टॉरीयन भी कहाँ हैं
नहीं तो पता होता हमें : कहाँ बनी, कैसे आई, कौन लाया
इतना ज़रूर है, किसी ने भी इसे पहन युद्ध नहीं किया है
किसी सेना का गणवेश नहीं रहा ये
न रामायण में, न महाभारत में, न ही विश्व-युद्धों में

लड़ते समय शायद आदमी के कपड़े उतर जाते हैं

इसका ज़िक्र न बाबरनामा में है, न आईन-ए-अकबरी में
ह्नेन्साँग भी चुप है
क्या तब भी चीन आज जैसा ही था ?

आप कुछ भी कह लो चीन ने सारी स्ट्रेटेजी टी-शर्ट से ही सीखी है —
सस्ता ! सबका ! सुविधाजनक ! डिज़ाइनर !
चाहो तो लिखवा लो पाश की कविता या फिर करणी सेना के नारे !

मर्दाना कमज़ोरी का इलाज करते डॉ० जुनैद ख़ानदानी
या हिमालयी शफ़ाख़ाना का तम्बू चलाने वाले क़दीमी वैद्य कीरतराम की तरह
ये सेक्युलर है और जातिविहीन भी

क्या हमारी राजनीति को टी-शर्ट नहीं हो जाना चाहिए?

फ़िंगर प्रिण्ट से खुलने वाली चीज़ों के इस दौर में
बिना पासवर्ड वाले टाइपराइटर की तरह है टी-शर्ट
जबकि पति शेयर नहीं कर रहे हैं पासवर्ड पत्नियों के साथ भी
शेयरिंग कितना विरल मूल्य हो गई है
बावजूद इसके कि इंस्टाग्राम के मँच पर शेयर की जा रही है
हनीमून की हॉट तस्वीरें

टी से ही चीज़ें बँटती हैं,
टी-शर्ट पहन कर सैनेट्री का काम करने वाला मेरा दोस्त टीकम बताता है
लेकिन ये बात
नेसडेक के स्क्रीन से दुनिया चलाते वारेन बफ़ेट कहाँ समझते हैं

वारेन बफ़ेट कभी टी-शर्ट पहना करो !

मैं डर जाता हूँ उन लोगों से जो टी-शर्ट नहीं पहनते
और प्यार करता हूँ गीत चतुर्वेदी से
जिनकी हर तस्वीर में बिना बटन-चेन की टी-शर्ट हुमगती रहती है

टी-शर्ट पर कितनी खु़श होती वर्जीनिया वुल्फ़
कि बण्टी और बबली दोनों एक-दूसरे का पहन सकते हैं, शबनम मौसी भी
और इधर दैनिक भास्कर का शीर्षक है :
लिंग से आज़ाद होता बहुलिंगी टी-शर्ट !