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टुअर / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
तोरा बिन उख बिख परान लागै छै।
तोरा बिना टुअर धरान लागै छै।
रात केॅ उठी-उठी पंखा डोलैतै केॅ?
बेरी-बेरी रात भर पानी पिलैतै केॅ?
देर ताँय सुतला पर झोली केॅ जगतै केॅ?
जीडी कॉलेज टहलैलेॅ रोजे पठैते केॅ?
असकल्लों दुनिया बीरान लागै छै।
तोरा बिन उखबिख परान लागै छै।
तोरा बिना टुअर धरान लागै छै।
जेना तेना नहाय छीयै।
कखनूँ काल खाय छीयै।
बड़की बीमारी में
डॉक्टर केॅ देखाय छीयै।
तोरा बिना हमरा मनझमाने लागै छै।
तोरा बिन उखबिख परान लागै छै।
तोरा बिना टुअर धरान लागै छै।
भोर साँझ अयथैं छै दिन रात जयथैं छै।
जेकरों जैन्हों भाग छै समय बितैथों छै।
तोरा बिना कहना दुख गरान लागै छै।
तोरा बिन उखबिख परान लागै छै।
तोरा बिना टुअर धरान लागै छै।
04/07/15 रात्रि सात बजे