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टुकड़ों टुकड़ों में ही फट कर जाना पड़ता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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टुकड़ों-टुकड़ों में ही फट कर जाना पड़ता है।
अपनी मिट्टी से जब कट कर जाना पड़ता है।

परदेशों में नौकर बन जाने की ख़ातिर भी,
लाखों में से चांस झपट कर जाना पड़ता है।

गलती से भी इंटरव्यू में सच न कहूँ, इससे,
झूटे उत्तर सारे रट कर जाना पड़ता है।

जीवन भर पीछा करती चुपचाप कज़ा लेकिन,
जब देती आवाज़ पलट कर जाना पड़ता है।

चना, चबैना, पानी, गमछा साथ रखो ‘सज्जन’,
सरकारी दफ़्तर में डट कर जाना पड़ता है।