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टूटकर गिरते हैं बादल-बिजलियाँ पीछे मेरे / अमरेन्द्र

टूटकर गिरते हैं बादल-बिजलियाँ पीछे मेरे
मैं चला करता हूँ आगे आँधियाँ पीछे मेरे

एक दिन बदनामियों से दिल मेरा लग जाएगा
जिस तरह से हैं लगी बदनामियाँ पीछे मेरे

खोद रक्खा है जमाने ने कुआँ आगे में भी
और पहले से खुदी हैं खाइयाँ पीछे मेरे

मैं उजाले के गले में हाथ डाले जाता था
जासूसी करती रहीं परछाइयाँ पीछे मेरे

सामने मेले लगे थे वादियों में फूलों के
मैं वहाँ था और थीं तनहाइयाँ पीछे मेरे

मैं खलाओं में चला आया हूँ कुछ ही सोचकर
छूटकर सब रह गए हैं आशियाँ पीछे मेरे

क्या हुई बातें बताऊँ क्या तुम्हें 'अमरेन्द्र' मैं
मौत के और जिन्दगी के दरमियां पीछे मेरे।