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टूटकर जुड़ता न शीशा लाख देखा जोड़कर / नन्दी लाल

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टूटकर जुड़ता न शीशा लाख देखा जोड़कर।
जा रहे हैं आप उसको बेसहारा छोड़कर।

स्वप्न दिन भर देखते बेकार क्या-क्या सोचकर।
लोग सो जाते हैं उम्मीदों की चादर ओढ़कर।

लूट, हत्या और दुष्कर्मों की खबरें क्या पढ़ें,
रख दिया है आज का अखबार हमने मोड़कर।

हार होने से या कोई दाँव देकर छीन लें,
कौन जाता है खुशी से यार कुर्सी छोड़कर।

रंक से राजा बनाया आपको मतदान कर,
घर चलाता है वही मजदूर पत्थर तोड़कर।

सब तमाशाबीन बनकर देखते हैं दूर से,
जा रहे हैं लोग उसको यूँ अकेला छोड़कर।