टूटती सांस को बल मिले / लाखन सिंह भदौरिया
टूटती साँस को बल मिले, शक्ति सम्बल बना ज़िन्दगी।
हर पथिक जो चला जा रहा,
लू-लपट से जला जा रहा,
विश्व मरुथल बना जा रहा,
प्रीति-शाद्वल बना, ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना, ज़िन्दगी।
धूल हर फूल पर है जमी,
आज शंकालु हर आदमी,
हर नयन में नमी की कमी,
जाह्नवी-जल बना ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना ज़िन्दगी।
शक्तियों का नहीं ह्रास कर,
आत्मा का तिमिर नाश कर,
सृष्टि-सर में भले वासकर,
मुक्त-शतदल बना ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना ज़िन्दगी।
जब तिमिर छा रहा है घना,
क्यों न हर साँस दीपक बना,
आत्म केन्द्रित न कर साधना,
लोक मंगल बना ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना ज़िन्दगी।
आज भटके हुए हैं चरन
खोजते फिर रहे, मुक्ति-मन,
आस्था को करा मत भ्रमन,
तीर्थ-स्थल बना ज़िन्दगी।
शक्ति-सम्बल बना ज़िन्दगी।