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टूटना मत / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
रे हत हृदय,
टूटना मत !
विपद् घोर-घन-चोट सहना !
दहकती
दुखों की प्रबल भट्ठियों में
- सतत मूक दहना !
- सतत मूक दहना !
अकेले
गरल-तप्त-धारों-उमड़ती
नदी में निरन्तर, निराक्रांत बहना !
अनादृत हृदय,
टूटना मत !
अँधेरी-अँधेरी घटाएँ,
सबल सनसनाती हवाएँ...!
विवह लहरता,
दबा, त्रस्त वातावरण !
क्रूर,
जैसे हुआ हो अभी,
हाँ, अभी,
राम,
सीता-हरण !
रे हृदय
टूटना मत !
नहीं दूर अब और
अभिनव, अनागत सुबह,
रुक्ष, उन्मन,
करुण, कृष्ण
छाया न ग्रस ले उसे,
मुसकराकर
बढ़ो,
हे हृदय,
सार्थ करने सुलह
पास
अभिनव, अनागत सुबह !