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टूटने और जुड़ने के बीच / स्वरांगी साने
Kavita Kosh से
मैं झुकती रही
टूटती रही रोती रही
थी मैं लड़की
इसलिए लगातार हारती रही
मैं जीतने के लिए पैदा हुई थी
मुझे हार के लिए तैयार किया जाता रहा
जीना और जीतना चाहती थी मैं भी
पर मुझे लड़की की तरह बड़ा किया गया
मेरी परवरिश ही वैसी थी
मैं जीती रही उम्र भर
टूटने और जुड़ने के ही बीच