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टूटा बाजूबन्द / रमेश रंजक

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मौसमी प्यास चौगुनी हुई
देख दुविधा का चाँद अमन्द
फ़सल के कटे खेत में मिला
किसी का टूटा बाजूबन्द

ज़ख़्म पर जैसे ठण्डी दवा
लगाने लगी फुरहरी हवा
दर्द ने ली गहरी-सी साँस
हो गईं भारी पलकें बन्द

उठी प्यासे अधरों की पीर
ओजने लगी नयन से नीर
तभी मोती से झरने लगे
कथानक भरे व्यथा के छन्द

और फिर यह टूटी ज़िन्दगी
जहाँ से टूटी जुड़ने लगी
निपट सूनेपन में भर गया
तुम्हारे होने का आनन्द