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टूटा शीश चमका / सुनीता जैन

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सुबह हुई,
दिन
शुरू हुआ-
डर लगा

तुम आए
चारों ओर
निमंत्रण था-
डर लगा

सहसा धूप खिली,
टूटा शीशा
चमका-
डर लगा।