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टूटी ग़ज़ल न गा पाएँगे !/ हरीश भादानी
Kavita Kosh से
टूटी ग़ज़ल न गा पाएँगे !
साँसों का इतना सा माने
स्वरों-स्वरों
मौसम-दर-मौसम
हरफ़-हरफ़ गुंजन-दर-गुंजन
हवा हदें ही बाँध गई है
सन्नाटा न स्वरा पाएंगे !
टूटी ग़ज़ल न गा पाएंगे !
आँखों का इतना-सा माने
खुले-खुले
चौखट-दर-चौखट
सुर्ख-सुर्ख बस्ती-दर-बस्ती
आसमान उल्टा उतरा है
अँधियारा न आँज पाएँगे !
टूटी ग़ज़ल न गा पाएँगे !
चलने का इतना-सा माने
बाँह-बाँह
घाटी-दर-घाटी
पाँव-पाँव दूरी-दर-दूरी
काट गए काफ़िले रास्ता
यह ठहराव न जी पाएँगे !
टूटी ग़ज़ल न गा पाएँगे !