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टूटे खपरैल-सी / माहेश्वर तिवारी

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गर्दन पर, कुहनी पर
जमी हुई मैल-सी ।
मन की सारी यादें
टूटे खपरैल-सी ।

आलों पर जमे हुए
मकड़ी के जाले,
ढिबरी से निकले
धब्बे काले-काले,
उखड़ी-उखड़ी साँसे हैं
बूढे बैल-सी ।

हम हुए अंधेरों से
भरी हुई खानें,
कोयल का दर्द यह
पहाड़ी क्या जाने,
रातें सभी हैं
ठेकेदार की रखैल-सी।