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टूटे धनु, बाण नही छूटे / सोम ठाकुर
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टूटे धनु, वाण नही छूटे
कोहरे की परतों में लक्ष्य -बिंदु खोए
डूब गई पीछे कि भीड़ कही
लहरों ने चीड़ -वन भिगोये
पहचाने ताड़ लग रहे छोटे
धरती पर बैठ गई उँचाई
जम गई हवा गहरी घाटी में
ताल के किनारे फैली खाई
मोती के सीप नही दुहराए कूलों ने
हंसों के पंख नही धोए
बार-बार गूँज उठे अंध कुएँ
छाने निर्वात प्रहार साँसों ने
कांपति लकीर खींची पन्नों पर
कसे और वक्ष नागपाशों ने
मुड़ने को हुए पाठ गुफ़ाओं को
फैलते पहाड़ छिली पीठों ने ढोये