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टूटे न ख्वाबों की लड़ी / आनंद कुमार द्विवेदी

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मुझे नींद में चलने की आदत है
कई बार मैं
वहाँ चला जाता हूँ
जहाँ मुझे नहीं जाना चाहिए
और कई बार तो
वहाँ तक ...
जहाँ से
लौटना नामुमकिन है !


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मुंदी पलकों पर
तुम्हारे होठों का एक एहतियात भरा खत...
कुछ लिपियाँ
बंद आँखों के लिए ही ईज़ाद की गयी हैं

आँख खोलो तो
सारे कमरे में हिना की खुशबू
ख़्वाब और महक की यह जुगलबंदी ...?

झूठे !
तुम अभी भी ख्वाबों में आते हो न !