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टूटे पंखों वाली चिड़िया / सरोज परमार
Kavita Kosh से
अलसुबह जब तुम नर्म घास घास पर
हल्के-से पाँव रखते हो
तुम्हारे पिछवाड़े की गली में
नगर पालिका के नल पर
घड़ों,बाल्टियों,कनस्तरों और डिब्बों
के बीच बतियाते लोग
अक्सर बहस पर उतर आते हैं
उनके शब्दों में झरने लगती हैं चिन्ताएँ.
तुम्हारी हवाख़ोरी के बीच
चाय की चुस्कियों के बीच
अख़बार की सुर्खियों के बीच
अक्सर राजनीति का कोई टेढ़ा
पेच कवायद करता रहता है
और आदतन गाली निकल जाती है
मगर तुम्हारी नज़र टिकी है
टूटे पंखों वाली चिड़िया पर
कहीं उड़ना तो नहीं सीख रही.