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टूटे सपने में / शैलेन्द्र सिंह दूहन

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भाई को भाई भाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में,
खुशियों के बादल छाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
अपने पन की भूख बढ़ी है लेकिन इक टूटे सपने में,
सम्बन्धों की प्यास जगी है लेकिन इक टूटे सपने में।
मा-बाबा आदर पाए हैं अपने घर को लौटाए हैं
बेटे हाथ पकड़ लाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
खुशियों के बादल छाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
हर भूखे का पेट भरा है लेकिन इक टूटे सपने में,
कृषकों का हर खेत हरा है लेकिन इक टूटे सपने में।
सारे शोषक शरमाए हैं मन ही मन वे घबराए हैं
मजदूरों ने हक पाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
खुशियों के बादल छाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
बिन रिश्वत रोजी पाई है लेकिन इक टूटे सपने में,
कुर्सी बोली सच्चाई है लेकिन इक टूटे सपने में।
वंचित बन्धन तोड़ आए हैं अंधियारों से टकराए हैं
लाखों सूरज उपजाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
खुशियों के बादल छाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
दिवस-निशा बीमार नहीं अब लेकिन इक टूटे सपने में,
श्रमजल भी लाचार नहीं अब लेकिन इक टूटे सपने में।
मिल-जुल कर सब हर्षाए हैं चमक-दमक के गढ़ ढाए हैं
कच्चे आंगन चहचाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
खुशियों के बादल छाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
भेद भाव की टूटी डाली लेकिन इक टूटे सपने में,
साथ मनीं हैं ईद-दिवाली लेकिन इक टूटे सपने में।
मन्दिर-मस्जिद थर्राए हैं लोगों ने ये ठुकराए हैं
नेह सने सुर झनकाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।
खुशियों के बादल छाए हैं लेकिन इक टूटे सपने में।