टूट गए / हरेराम बाजपेयी 'आश'
तुमसे क्या टूटे हम, टूट गये जग से,
मंजिल तो टूटी ही, टूट गये मग से।
तन-मन से टूट गये धन से,
बन्धन वे टूट गये, जो जोड़े थे जतन से।
बूंद-बूँद टूट गई, टूट गई गागर,
टूट गया रेवा तट, टूट गया सागर।
टूट गई कवितायें और टूटी जुबानियाँ,
टूटी हुई यादों की, टूटी कहानियाँ।
टूट गया कोलाहल, टूट गई शांति,
टूटा विशवास और टूट गई भ्रांति।
टूट गई संध्या और टूटा प्रभात है,
टूट गया दिवस और टूटी हुई रात हैं।
टूटी जो नींदिया तो टूट गए सपने भी,
टूट थे गैर मगर टूट गये अपने भी।
टूटे है वचन सारे, टूट गई रस्मे।
टूट गये वादे और टूट गई रस्मे।
टूटा था भूत, अब टूट गया वर्तमान,
टूट कर गिरा भविष्य, समय है समर्थवान।
टूट गई दोस्ती और टूटा मेरा यार है।
टूट गई वफा और टूटा हुआ प्यार हैं।
टूट गई वसुधा और टूटा आकाश है,
दिशा-दिशा टूट गई, टूटा खुद "आशा" है।
टूटे और पिछड़ गये,
पत्ते से हम,
परते-दर परतें हैं,
हम तुम और गम।