भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टूट गया दिन / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
काँटे-सा टूट गया
दिन
नंगे पाँव में ।
राहों भर फैल गया
सुरमई बुरादा
इकलौत पंथी का
सूँघकर इरादा
नागिन-सी बैठ गई
पगडंडी
छाँव में ।
डूबने लगा धूमिल
गाँव का किनारा
टूट कर गिरा मन के
व्याम का सितारा
जल भर आया प्यासी
आँखों का
नाव में ।