भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टेम्पू चालक / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
दिन के उजाले में बेहद शक्ति होती है
प्रत्येक व्यावसायिक प्रतिष्ठान की देह
इसमें साफ-साफ दिखाई देती है
और वह निकल पड़ता है काम की खोज में
जहां से जो माल मिला उसे पहले उठाया
और सुबह की पहली यात्रा शुरू की।
इस तरह से तीन बार या चार बार
या उससे भी अधिक बार
कोशिश करता है कि माल ढोया जाए
और ग्राहकों तक पहुंचाया जाए।
शाम होती देखकर वह खीज पड़ता है
अभी वह थका भी नहीं और आ गई रात।
अब इस युग में बंधे समय का कोई महत्व नहीं रहा
रात के दस बजे भी फोन बज पड़ता है
और वह तैयार है बिना किसी तैयारी के
निकालता है वह अपना तीन पहिया
और चल पड़ता है उसकी बाजारू तान छोड़ते हुए
इस वक्त भूल जाता है वह कि यह सोने का वक्त है
और उसने कुछ खाया-पीया भी नहीं है।