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टेरती फगुनहट है आओ मनमीत / रंजना वर्मा

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टेरती फगुनहट है आओ मनमीत।
गलियों में गूंज उठे फागुन के गीत॥

यादों का पंछी पर तोलने लगा
कोकिला अमराई में बोलने लगा,
झुरमुट के पीछे जब बजी बाँसुरी
संयम का आसन भी डोलने लगा।

छेड़तीं हवाएँ सुगंधित संगीत।
गलियों में गूंज उठे फागुन के गीत॥

सर्षप सुमनों ने ऋतुराज बुलाया
कवियों ने भ्रमरों को पास सुलाया।
अलियों ने गुनगुन की तान छेड़ दी
सुमनों ने लज्जा अंचल ढलकाया।

तितली सिखाती है जीवन की रीत।
गलियों में गूंज उठे फागुन के गीत॥

रवि ने संध्या मुख पर डाला गुलाल
टेसू ने उपवन को किया लाल लाल,
हँसा गुलमोहर पलाश झूमने लगा
चातक मयूरों की बदल गई चाल।

मस्ती है कहती रुत जाए न ये बीत।
गलियों में गूंज उठे फागुन के गीत॥