टेलर आफिसर / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध
सारे दिन पैसे गिनकर
लौट शाम को घर
वह ऐसी दुनिया बनाता है जहाँ
पैसे नहीं होते। बाज़ार में सब्ज़ीवाले को
काग़ज़ के पुड़िए देता है, बच्चों को
माँगने पर देता है धातु की चकतियाँ
बीबी वैसे ही कभी कुछ माँगती नहीं
कभी-कभार रिश्ते परिवार को हो दरकार
तो डायरी में लिख लेता है कि अगले दिन
दफ़्तर में जाकर दफ़्तरी काम करना है।
उसकी पैसों के लिए प्रतिबन्धित दुनिया में
बहुत सारी चीजे़ं हैं, जैसे जीने के लिए
हवा, पानी, भोजन और थोड़ा सा प्यार।
किताबें और टेलीविज़न के अलावा
फोन पर लम्बी बातें हैं, जिनमें पैसों
का ज़िक्र नहीं होता।
बहुत कम पर कभी-कभार आ ही जाते हैं
पेसे सेंध लगाकर घर दुनिया की दीवारों में
ऐसे दिनों में पड़ता है उसे दमे का दौरा
बीबी चुप करा कर बच्चों को
मसलती है उसका सीना
हाँफता-हाँफता थककर वह डूब जाता है
सपनों में और बीबी सोचती है
पैसों के लिए क्या नहीं गुज़र रही उस पर।