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टेलीफ़ोन पर बातचीत / वोले शोयिंका / विनोद दास

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वाज़िब किराया
किसी पचड़े में ना पड़ने वाला इलाका
मकान मालकिन ने हलफ़िया कहा
कि वह अपनी इस इमारत में नहीं रहती
अब मुझे अपने बारे में इक़बाल करना ही बाक़ी रह गया था
आगाह करते हुए मैंने उनसे कहा —
“मैडम ! आने-जाने में समय की बर्बादी मुझे नापसन्द है
पहले ही साफ़ बता दूँ कि मैं अफ़्रीकी हूँ.”

खिंच गई ख़ामोशी
ऊँचे तबके सरीखी ख़ामोशी के बोझ से टूट गई बात की लड़ी
फिर लिपस्टिक रंगी आवाज़ के साथ
सुनहरी लम्बी सिगरेटदानी से सिगरेट निकालने की चीं- चीं सुनाई दी
लगा कि मैं ग़लत फँस गया

“कितना काला है रंग “
जी हाँ ! मैंने ग़लत नहीं सुना था.
“तुम हलके काले हो या गहरे? "
एक बटन, फिर दूसरा बटन
लुका- छिपी वाली आम बातचीत की सड़ी बदबू तिरने लगी
लाल बूथ, लाल बम्ब और दो तल्ला लाल बस
काले तारकोल को रगेदती हुई — यह यथार्थ था
नागवार ख़ामोशी से शर्मिन्दा

मुझ आहत-अवाक् को सहज करने के लिहाज में
अपने लफ्ज़ों के वज़न में फ़र्क लाते हुए वह बोली —
“तुम गहरे काले हो या हल्के?”
फिर उसने और खुलकर पूछा —
“यानी कि तुम निख़ालिस चाकलेटी हो दूधिया चाकलेटी?”
उसकी आवाज़ में रोग शिनाख़्त करने वाली सी तटस्थता थी
जैसे उसने अपनी आवाज़ तले अपनी शख्सियत दबा दी हो
फ़ौरन हमारे मन के तारों में तालमेल हो गया

टोहते हुए मैंने कहा, —”पश्चिमी अफ्रीकी सीपिया”
दुबारा ख़्याल आया तो फिर कहा, — ”पासपोर्ट में तो यही दर्ज़ है “
ख़ामोशी से अपने ख़यालों की उड़ान में वह उस रंग का ख़ाका खींच ही रही थी
कि तभी सचाई से तमतमा गया माउथपीस पर उसका लहज़ा —
““वह क्या होता है?” हताश होकर उसने पूछा

“नहीं जानता क्या होता है यह.समझ लीजिए अंग्रेज़ लड़की के भूरे बाल ”
“”मतलब काला। क्यों यही न?”
“पूरा बिलकुल वैसे जैसा नहीं
चेहरे से गहरा भूरा हूँ, लेकिन मैडम बाक़ी मेरी देह देखें !
मेरी हथेलियाँ.मेरे तलुए उजले हैं
गोया परऑक्साइड से साफ़ किया गया हो ।
हाँ ! मेरे बैठने के बेहूदे तरीके से रगड़ खा-खाकर मेरा चूतड़
ज़रूर कव्वे सा काला हो गया है”

यह भाँपकर कि उसके रिसीवर के पटकने की आवाज़
मेरे कान में सुनाई देनेवाली है
मैंने चिरौरी की — “एक मिनट, मैडम !
“क्या आप मुझे ख़ुद देखना नहीं चाहेंगी।

अँग्रेज़ी से अनुवाद  : विनोद दास