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टोकरी बुनते हुए / अमृता भारती
Kavita Kosh से
टोकरी बुनते हुए
मैं नही जानती थी
कि मैं इसमें फल रखूँगी या स्वप्न
या एक शिशु
जो वह मुझे देगा
समय की प्रार्थना के उत्तर में
टोकरी बुनते हुए
मैंने नही जाना था कि मैं
अपना ही रक्त बुन रही हूँ ।