टोहूं मैं उस देश नै जहां हो सबका रूजगार / मंगतराम शास्त्री
टोहूं मैं उस देश नै जहां हो सबका रूजगार, सभी के पास में
रोटी कपड़ा घर हो….हे रै रै रै रै….
सबको पेट भराई भोजन मिलता हो सम्मान से
ना कोए भूखा सोता हो ना मरता हो अपमान से
ना कोए ऊंचा नीचा हो जहां जाति-गोत विधान से
समता के सन्देश में जहां मिलता हो बल-प्यार, खुले आकाश में
उड़ता खग नीडर हो…हे रै रै रै रै…..
कपड़े के टोट्टे में कोए भी नहीं जिडाया मरता हो
शिखर दोपहरी लूआं में कोए नहीं उघाड़ा फिरता हो
सर्द ठिठरती रात्यां में कोए ना नंगे तन ठिरता हो
हितकारी के भेष में जहां ना हो कोए बदकार, आम और खास में
जहां ना कोए अंतर हो…हे रै रै रै रै….
सबको मौका मिलता हो जहां मन की बातें कहणे का
जरूरत के अनुसार सभी को घर मिलता हो रहणे का
ना हो कोए दबवार किसे की धौंस खाम खा सहणे का
सरकारी आदेश में जहां ना हो भ्रष्टाचार, ठगण की आस में
कोए ना खड़ा अफसर हो…हे रै रै रै रै ….
मंगतराम कहै आपस में सबका भाईचारा हो
गीत और संगीत जहां हो रंगों भरा नजारा हो
मर्यादा के नाम पै कोए ना बणता हत्यारा हो
सामाजिक विद्वेष में जहां ना हो मारो-मार, धरम की चास में
नहीं पकता खंजर हो….हे रै रै रै रै…..