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ट्रेन की पटरियाँ / सोम ठाकुर
Kavita Kosh से
ट्रेन की पटरियाँ
कह रही है कथा
एक आवारगी से जुड़ी शाम की
हाँफते से हिरन का
कभी चौंकना
गूँजती सीटियों की उठी ट्रेन से बैठना
गिटिट्यों के बिखरते हुए
ढेर पर
चक्रवातों - घिरा मन
हुआ है हवा
कौन ले साँस आराम की
सिगनलों के हरे - लाल रंगों -जड़ी
दृष्टि का लौटना
खुदकशी की अंधेरी गुफा में रुकी
सृष्टि का लौटना
गीत संजीवनी दे गया है किसी
एक महके नाम की