भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ठंड के अहसास वाले पल / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
					
										
					
					        आग थे जो
        अब ठिठुरता जल हुए,
        ठंड के अहसास वाले
        पल हुए !
बर्फ़ में ढलने लगे
ज्वालामुखी
रोशनी की हर जलन
लगती चुकी
        धुएँ गीली आँख का
        काजल हुए !
धूप की गर्मी 
हुई है चाँदनी
लू हिमानी शीत का
कुहरा बनी
        सूर्यदेही
        अब सजल बादल हुए !
बींधती है देह
हिमदंती हवा
धमनियों में
एक सन्नाटा थमा
        गूँजते वन
        मौन के जंगल हुए !
        ठंड के अहसास वाले
        पल हुए !
 
	
	

